ज्ञान प्राप्ति ना दिवसे
तमने पामीने ज़ंज़तो बढ़ी खरी पड़ी,
हवे, जीवता ज पामु मोक्ष एवो अरमान छे।
जली चुकी छे अगरबत्ती राख रह्यी छे बाकी,
द्रष्टि थई सम्यक ते ज कर्मो नु अवसान छे।
खुले छे ज्ञान जेट्लू मौन थवाय छे ऐटलू
लाख जन्मे पाम्यो छू के बोलवू स्मसानछे।
संसार छोदयो तो पकड्यो वैभव त्यागनो
त्यागी तेय "जहोजलाली " ते त्याग नु अपमान छे।
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